रविवार, 15 मई 2011

क्रोध में राजा ने अपने हितैषी को खो दिया

एक राजा को पक्षी पालने का शौक थाअपने पाले पक्षिओ में एक बाज उन्हें इतना प्रिय था कि उसे वे अपने हाथ पर बिठाए रहते और कही जाते तो साथ ही ले जाते थेएक बार राजा वन में आखेट करने गएउनका घोड़ा दुसरे साथियों से आगे निकल गयाराजा वन में भटक गएउन्हें बहुत प्यास लगी थी घूमते हुए उन्होंने देखा कि एक चटान कि संधि से बूँद - बूँद करके पानी टपक रहा है राजा ने वहा  एक प्याला जेब से निकाल कर रख दियाकुछ देर में प्याला भर गया राजा ने  प्यास कि व्यग्रता में प्याला उठाकर पीना चाहा, किंतु उसी समय उनके कंधे पर बैठा बाज उड़ा और पंख मारकर उसे लुढ़का दियाराजा को बहुत क्रोध आया , किंतु उन्होंने प्याला फिर भरने के लिए रख दिया. बड़ी देर में प्याला फिर भरा. जब वो पिने को उद्यत हुए तो बाज ने फिर पंख मारकर उसे गिरा दियाक्रोधित राजा ने बाज कि गर्दन मरोड़कर उसे मार डाला जब बाज को निच्चे फेंककर उन्होंने सिर उठाया तो उनकी दृष्टी चटान कि संधि पर पड़ीवहा एक मरा सर्प दबा था और उसके शरीर में से वह जल टपक रहा था राजा समझ गए कि जल पीकर मैं मर न जाऊ, इसीलिए बाज ने बार - बार जल गिराया उन्हें बहुत दुख हुआ , किंतु अब अपने क्रोध पर पश्चाताप के सिवाय कुछ नहीं  बचा था।  

सार यह है कि  क्रोध एक ऐसा दुर्गुण है , जो मनुष्य का विवेक हर लेता है और विवेकहीन मनुष्य अपने हितैषी का भी शत्रु हो जाता हैअत: क्रोध पर नियंत्रण रखना जरुरी है

1 टिप्पणी:

Maheshwari kaneri ने कहा…

बिल्कुल सही कहा..शिक्षाप्रद कहानी……